Thursday, March 4, 2010

उदास दील

आज फिर उदास है दील ।

तनहा चलते हुए इस राह में

हर मोड़ पे मिले लोग हमें । चलते रहे बिछड़ते रहे ।

ये शिकायत है . क्यों नहीं मिला हमसफ़र कोई हमें।

आज फिर चल रहे है इस राह में अकेले ।

शरद आचार्य

आज फिर उदास है दील । तनहा चलते हुए इस राह में .

हर वो लोग जो मिले इस राह में । न जाने क्यों मतलब के यार थे । में समजता था हम दो ही है

उनके तो कई और हम राह थे उस राह में .

आज फिर उदास है दील । तनहा चलते हुए इस राह में .

Saturday, February 20, 2010

मातृभाषा दीन ... सादर प्रणाम सब को

आज विश्व मातृभाषा दीन है । एक हिन्दुस्तानी होने के नाते मेरी मातृभाषा हिंदी है । गुजरात में जन्म लेने के कारन मेरी मातृभाषा गुजरती भी है । और में अंग्रेजी भाषा भी जानता हू यही । हमारे भारत देश का गौरव है । में किसी से ये नहीं कहूँगा आओ हमारी मातृभाषा को बचाओ । क्यों की ये बात अन्दर से उठने वाली है
बस आप अपने आप पे गर्व करो अपनी मातृभाषा पे गर्व करो और जो कुछ कर पाओ इस के लिए करो ।
सब से बड़ा आदर अपनी भाषा के लिए अपने लेखको का सन्मान उनकी लिखी हुई बाते पढ़ के होगा
बस खुद पढ़िए और लोगो को पढाई में रूचि लाये हर भाषा इसी से आगे आ जाएगी आप की मातृभाषा चाहे कोई भी हो । जय हिंद

Sunday, December 27, 2009

राह में चलते हुए पार्ट ४

आगे चलते हुए मुझे एक बहोत बुढा आदमी मिला जो बहोत ही झख्मी था ।
चहरे पे एक अनोखा तेज था । और आस पास कुछ प्रकाश जो कही और देख ने को नहीं मिला
मेने पूछा बाबा आप कौन हो । उन्होंने कहा में धर्म हू । मेने पूछा कौन सा धर्म बाबा हिन्दू मुस्लिम
उन्होंने बड़े शांती से उत्तर दीया । वो सब तो तुम लोगो ने बनाया है । ये मेरे शरिर पर जो घाव है वो वही है ।
और ये सिर्फ हिन्दू मुश्लिम का नहीं है । दुनिया भर में मेरा ये हाल है ।
में था सिर्फ एक । लोगो ने मेरे टुकड़े कर कर के । मेरा ये हाल कर दीया । और टुकडो में भी सब कहते एक ही बात है । जो में जब से हू तब कही गयी थी । इंसानियत , दया , और लोगो के प्रति प्यार लेकिन अफ़सोस
पूरी दुनिया में झगडे अब सिर्फ मेरे नाम से ही शुरू होते है । पिछले कई सालो से । मेरे टुकड़े कर कर के । जिस ने भी नया धर्म बनाया । उसने मेरे पुराने अंश खर्तम करने की कोशीष की
ये बात सिर्फ हिंदुस्तान तक की नहीं है । कई १००० सालो से यही होता आ रहा है ।
सब से ज्यादा जान मेरी नाम पे गयी है । और कुछ मेरे ठेकेदार बने लोग । करोडो लोगो को जब ऐसे ठग ते है । मुझे सब से ज्यादा दुःख होता है । मेरे नाम पे लोग एक दुसरे को मारते है ।
और रोज आये दीन नए नए पंथ मेरी नयी परिभ्षा लिख के आ जाते है ।
अब तो में सच में क्या हू वो भी में भूल चूका हू । इतनी मेरी व्याख्या बदल गयी है ।
मेने पूछा बाबा में क्या कर सकता हू । उन्होंने कहा बेटा । बस तू इंसानियत के धर्म में मानता रह ।
और जितनो तक हो सके ये संदेश पहोंचा ॥ के इंसानियत के आगे और कोई धर्म नहीं है ।
हर भगवान खुदा। या इशु सब एक ही बात कहते आये है ।
उसके आगे और कोई धर्म नहीं है
सुखी रहो
और बाबा ने मुझसे कहा बेटा आगे जा और तुजे बहोत कुछ मिलेगा ... और में उन्हें प्रणाम कर के आगे की और चल पड़ा

राह में चलते हुए ... पार्ट ३

आगे चलते हुए ॥ मुझे एक बहोत ही दया जनक हालत में एक इंसान दिखाई दीया ॥ जिसके पास कुछ भी ढंग का नहीं था और कई दीनो से जेसे खाना भी नहीं खाया था । और एक दम बीमार सा । कभी भी दम तोड़ दे वेसा मेने पूछा कोंन हो भाई । उसने कहा में आझादी हू । मेने कहा आझादी । मतलब १९४७ वाली उसने कहा हाँ । मेने कहा वो तो अभी तो ६० साल के हो आप ये हालत तो बहोत ख़राब है उसने कहा वो सिर्फ एक ही साल था उसके बाद तो लोगो ने मुझे कब का बहार फेंक दीया । देश के राजकारणी लोगो ने देश को वापस गुलामी को राह पे रख दीया है । और आम इंसान भी बहोत सारी चीजों की गुलामी में पड़ चूका है । और उसके बाद मुझे किसी ने देखा भी नहीं है । पिछले कई सालो से में आखरी साँस ले रहा हू । मालूम नहीं क्यों मौत भी नहीं आती । और कोई देखने वाला भी नहीं है ।
में परेशां हो गया मेने सोचने लगा हम तो आज़ाद है । फिर आज़ाद की ये हालात
लेकिन मेरी परेशानी को देखते हुए उसी ने कहा । तुम चाहे अपने आप को आज़ाद संजो लेकिन आज का समाज किसी भी चीज़ में आज़ाद नहीं है ।
मेने कहा में तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हू । उसने कहा । बस कुछ लोगो की मेरी चाहत में में झिन्दा हू लेकिन कह नहीं सकता वो चाहत भी कब तक मुझे झिन्दा रखेगी ।
और ऐसी बहोत सी चीज़े है जिस की गुलामी में लोग पड़ते ही जायेंगे । और में जो अभी आखरी सांसो पे हू वो भी ख़तम हो जाएगी ॥ तू मेरी फिकर मत कर मेरी मौत तो पक्की ही है ।
दुनिया के नेता और नयी नयी चीज़े तुम सब को गुलाम बना ने में लगी हुयी है ।
तो मेरी मदद करना अब किसी के बस की बात नहीं है ॥
तुम्हारी यात्रा सुभ हो ॥ कह के उसने मुझे आगे भेज दीया ॥
और आगे जाते मेंसोच रहा था अब ।
वो अगले नोट में

राह में चलते हुए

आगे चलते मुझे एक सख्स मिला एक दम लम्बा पहेलवान लेकिन एक दम जेसे कीचड़ से बहार आया हो और हर जगह गन्दा सा ॥ कलित लगी हुयी और सफ़ेद कपडे जो एक दम गंदे हो चुके थे बस कुछ भाग से मालूम पड़ता था के सफ़ेद कपडे थे । में पहले तो दर गया ॥ लेकिन देखा कही पे चोट iनहीं थी

सिर्फ गन्दगी से भरा था देख के डरलग रहा था । लेकिन फिर भी बात की
तो उसने बताया वो राजनीति है । मेने कहा किस देश के हो उसने कहा राजनीति किसी एक देश का नहीं सारे देश मेरे अपने है मेने पूछा इतनी गन्दी हालत में क्यों हो फिर । उसने कहा । मेरे अखाड़े में उतरे लोगो ने ये हालत कर दी है । और रोज और गन्दा किये जा रहे है । मेंने पूछा आप अपने आप को साफ़ क्यों नहीं करते उसने कहा अब जो भी राज्करिणी लोग है वो नहीं चाहते में साफ़ हो जाऊं मेने कहा में साफ़ कर दू उसने कहा । तू अकेला कुछ नहीं कर सकता । और तेरे जेसे लोग भी कुछ नहीं कर सकते तुम सब लोग दूर से तमासा देखो
केसे ये लोग और गन्दा करते है । और अछे लोग जो साफ़ करना चाहते है उन्हें ये लोग रहने नहीं देते
मेने पूछा तो कभी आप साफ़ नहीं होंगे
उसने कहा एक समय आएगा लेकिन अभी नाझ्दिक में तो कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही ये जो कुछ सफ़ेद भाग दिख रहा है कपड़ो पे वो १ या दो अच्छे आदमी ओ की वजह से है । जो भी बहोत जल्द चले जायेंगे
फिर उसने कहा तुम भी आगे जाओ । यहाँ किसी ने देख लिया मेरे साथ तो तुम्हे भी । परेशां कर देंगे
और में आगे चला आया
इस बार मुझे ॥ कुछ इतना ख़राब नहीं लगा । जितना भारत को मिल के लगा था
अब आगे बढ़ते में कई और लोगो से मिला ॥ वो अगले नोट में