Sunday, December 27, 2009

राह में चलते हुए ... पार्ट ३

आगे चलते हुए ॥ मुझे एक बहोत ही दया जनक हालत में एक इंसान दिखाई दीया ॥ जिसके पास कुछ भी ढंग का नहीं था और कई दीनो से जेसे खाना भी नहीं खाया था । और एक दम बीमार सा । कभी भी दम तोड़ दे वेसा मेने पूछा कोंन हो भाई । उसने कहा में आझादी हू । मेने कहा आझादी । मतलब १९४७ वाली उसने कहा हाँ । मेने कहा वो तो अभी तो ६० साल के हो आप ये हालत तो बहोत ख़राब है उसने कहा वो सिर्फ एक ही साल था उसके बाद तो लोगो ने मुझे कब का बहार फेंक दीया । देश के राजकारणी लोगो ने देश को वापस गुलामी को राह पे रख दीया है । और आम इंसान भी बहोत सारी चीजों की गुलामी में पड़ चूका है । और उसके बाद मुझे किसी ने देखा भी नहीं है । पिछले कई सालो से में आखरी साँस ले रहा हू । मालूम नहीं क्यों मौत भी नहीं आती । और कोई देखने वाला भी नहीं है ।
में परेशां हो गया मेने सोचने लगा हम तो आज़ाद है । फिर आज़ाद की ये हालात
लेकिन मेरी परेशानी को देखते हुए उसी ने कहा । तुम चाहे अपने आप को आज़ाद संजो लेकिन आज का समाज किसी भी चीज़ में आज़ाद नहीं है ।
मेने कहा में तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हू । उसने कहा । बस कुछ लोगो की मेरी चाहत में में झिन्दा हू लेकिन कह नहीं सकता वो चाहत भी कब तक मुझे झिन्दा रखेगी ।
और ऐसी बहोत सी चीज़े है जिस की गुलामी में लोग पड़ते ही जायेंगे । और में जो अभी आखरी सांसो पे हू वो भी ख़तम हो जाएगी ॥ तू मेरी फिकर मत कर मेरी मौत तो पक्की ही है ।
दुनिया के नेता और नयी नयी चीज़े तुम सब को गुलाम बना ने में लगी हुयी है ।
तो मेरी मदद करना अब किसी के बस की बात नहीं है ॥
तुम्हारी यात्रा सुभ हो ॥ कह के उसने मुझे आगे भेज दीया ॥
और आगे जाते मेंसोच रहा था अब ।
वो अगले नोट में

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