Thursday, March 4, 2010

उदास दील

आज फिर उदास है दील ।

तनहा चलते हुए इस राह में

हर मोड़ पे मिले लोग हमें । चलते रहे बिछड़ते रहे ।

ये शिकायत है . क्यों नहीं मिला हमसफ़र कोई हमें।

आज फिर चल रहे है इस राह में अकेले ।

शरद आचार्य

आज फिर उदास है दील । तनहा चलते हुए इस राह में .

हर वो लोग जो मिले इस राह में । न जाने क्यों मतलब के यार थे । में समजता था हम दो ही है

उनके तो कई और हम राह थे उस राह में .

आज फिर उदास है दील । तनहा चलते हुए इस राह में .