आज फिर उदास है दील ।
तनहा चलते हुए इस राह में
हर मोड़ पे मिले लोग हमें । चलते रहे बिछड़ते रहे ।
ये शिकायत है . क्यों नहीं मिला हमसफ़र कोई हमें।
आज फिर चल रहे है इस राह में अकेले ।
शरद आचार्य
आज फिर उदास है दील । तनहा चलते हुए इस राह में .
हर वो लोग जो मिले इस राह में । न जाने क्यों मतलब के यार थे । में समजता था हम दो ही है
उनके तो कई और हम राह थे उस राह में .
आज फिर उदास है दील । तनहा चलते हुए इस राह में .